केदारनाथ मंदिर को आखिर किसने और किस वजह से बनाया। इसके पीछे की क्या कहानी है।

हर किसी के मन में यह सवाल जरूर आता है कि केदारनाथ मंदिर को आखिर किसने और किस वजह से बनाया था। सबसे चौकाने वाली बात यह है कि केदारनाथ धाम का शिवलिंग बाकी शिवलिंग से इतना अलग क्यों है? इसके पीछे कौन सा रहस्य छिपा है? सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि बिना किसी नुकसान के 400 सालों तक यह मंदिर बर्फ में कैसे दबा रहा। और इसके पीछे की कहानी क्या है? जब मंदिर के कपाट छ महीने के लिए बंद हो जाते हैं तब अंदर जलने वाला दीपक आखिर छ महीने तक कैसे निरंतर जलता रहता है? और सबसे बड़ा सवाल 2013 की बाढ़ के समय जब पूरा क्षेत्र तबाह हो गया था तो मंदिर को बचाने के लिए पीछे से आई विशाल भीम शिला किसने रखी? क्या इसे महज एक संयोग मानते है या किसी दैवीय शक्ति का चमत्कार। ऐसे केदारनाथ धाम के अनसुने रहस्य आपको बताएंगे जिनका जवाब शायद आज भी विज्ञान के पास नहीं है। 

Kedarnath-Uttarakhand

भारत के उत्तराखंड में बसा केदारनाथ धाम केवल एक मंदिर नहीं बल्कि आस्था रहस्य और चमत्कारों का अद्भुत संगम है। हिमालय की ऊंचाइयों में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक यह पवित्र स्थल सदियों से भक्तों को अपनी ओर खींचता आया है। पर क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर के हर पत्थर के पीछे है अनगिनत कहानियां जो केवल आस्था ही नहीं बल्कि चमत्कारों और विज्ञान से भी जुड़ी हैं। 16 जून 2013 की रात जब प्रकृति ने अपना तांडव दिखाया और उत्तराखंड के केदारनाथ में हर ओर विनाश हुआ था। लेकिन इसी विनाश के बीच एक ऐसा चमत्कार घटा जिसने लोगों की आस्था को और भी गहरा कर दिया। उस रात केदारनाथ में बाढ़ का पानी मंदाकिनी नदी से बहता हुआ आ रहा था। भारी बारिश ग्लेशियर के पिघलने से और भी भयानक हो गई। पानी पत्थर और मलबा शहर को अपनी चपेट में लेता जा रहा था। जहां पहले पहाड़ों की सुंदरता थी वहां अब अब विनाश का तांडव था। होटल, घर, दुकाने सब कुछ बहा ले गया। करीब 6000 लोग मारे गए और लाखों बेघर हो
गए।

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लेकिन एक बात साफ थी यह आपदा केदारनाथ मंदिर की ओर बढ़ रही थी। यह भगवान शिव के पवित्र धाम को तबाह करने वाली थी। जैसे ही पानी मंदिर की ओर बढ़ा अचानक एक विशाल शिला जिसे अब भीम शिला कहा जाता है। पानी के बहाव के साथ बहती हुई मंदिर के पीछे आकर रुक गई। वह पत्थर मंदिर के करीब 50 फीट पीछे रुक गया और बाढ़ के पानी को दो हिस्सों में बांट दिया। उस क्षण मानो भगवान शिव की स्वयं कृपा ने मंदिर को तबाही से बचा लिया हो। बाढ़ का सारा पानी भीम शिला से टकराकर मंदिर के दोनों ओर से बह गया। आसपास के सभी ढांचे बह गए। लेकिन मंदिर शिव का यह पवित्र धाम चमत्कारिक रूप से सुरक्षित बचा रहा। यह सिर्फ एक घटना नहीं थी यह शिव के प्रति भक्तों की आस्था का जीवंत प्रमाण बन गया। इस विशाल शिला को स्थानीय लोगों ने भीम शिला का नाम दिया। महाभारत के वीर योद्धा भीम के नाम पर रखी गई यह शिला अब केदारनाथ धाम के चमत्कार की प्रतीक बन चुकी है। 

इसका नाम भीम शिला ही क्यों रखा गया? 


लोगों का मानना है कि यह भगवान शिव की कृपा और महाभारत के भीम की शक्ति का प्रतीक है। आज भी भक्त इस शिला की पूजा करते हैं। वैज्ञानिक भी इस घटना से हैरान रह गए कि यह पत्थर पहाड़ से खिसक कर बहता हुआ नीचे आ गया था। लेकिन यह कैसे संभव हुआ कि यह शिला मंदिर के ठीक पी आकर रुकी और पानी के बहाव को दो हिस्सों में बांट दिया। यह शिला लगभग 20 से 25 फीट लंबी और 10 से 15 फीट चौड़ी थी। इसका वजन लगभग 1000 मेट्रिक टन का माना जाता है। अगर यह शिला मंदिर से टकराती तो मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर देती। उस दौरान मंदिर में करीबन 300 लोग ने शरण ली हुई थी और इस शिला की वजह से उन सबकी जान बच गई। 2013 की इतनी भयंकर जल प्रलय के बावजूद केदारनाथ मंदिर आज भी कैसे सुरक्षित खड़ा है इसका जवाब छुपा है प्राचीन इंटरलॉकिंग टेक्नोलॉजी में। इस तकनीक से मंदिर के भारी पत्थरों को बिना किसी गाड़े या सीमेंट के इस तरह जोड़ा गया कि वह एक दूसरे में पूरी तरह फिट हो गए। हजारों साल पहले जब तकनीक और आधुनिक उपकरणों का कोई नामो निशान भी नहीं था तब इस मंदिर को भारी पत्थरों से बनाया गया लेकिन इन पत्थरों को जोड़ने के लिए किसी गाड़े या सीमेंट का इस्तेमाल नहीं हुआ। 

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प्राचीन भारतीय कारीगरों ने पत्थरों को इस प्रकार तराशा कि वह एक दूसरे में एकदम सटीक तरीके से लॉक हो जाते थे इस तकनीक ने मंदिर को प्राकृतिक आपदाओं से बचाया है। चाहे वह भूकंप हो या फिर भारी हिमपात हो। यह इंटरलॉकिंग तकनीक ही थी जिसने पत्थरों को इतना मजबूत बना दिया कि उन्हें कोई आपदा हिला नहीं सकी। एक ऐसी तकनीक जो आज भी वैज्ञानिकों को चौका रही है। यही भारतीय वास्तुकला का कमाल है। आपके मन में सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि आखिर किसने इतनी मजबूत और अत्याधुनिक तकनीक से केदारनाथ मंदिर का निर्माण किया। इसके पीछे की कहानी और इतिहास को जानना बेहद दिलचस्प है।  

केदारनाथ मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया?


केदारनाथ मंदिर का निर्माण अत्यंत रहस्यमय और प्राचीन माना जाता है। यह मंदिर ना केवल धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है बल्कि इसके निर्माण के साथ जुड़ी पौराणिक कथाएं इस स्थल को और भी अधिक अलौकिक और रहस्यमय बनाती हैं। इसमें हम महाभारत कथा पर बात करेंगे जिसमें सबसे प्रसिद्ध कथा है। इस मंदिर के निर्माण के बारे में धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया गया। लगभग चार दशकों तक उन्होंने हस्तिनापुर पर शासन किया। एक दिन पांडव भगवान श्री कृष्ण के साथ बैठकर महाभारत युद्ध की समीक्षा कर रहे थे। उस समय पांडवों ने श्री कृष्ण से कहा "हे नारायण हम भाइयों पर अपने बंधु और गुरुजनों की हत्या का कलंक है। इस कलंक को कैसे मिटाया जाए।" श्री कृष्ण ने उत्तर दिया "भले ही तुमने युद्ध में विजय प्राप्त की हो लेकिन तुमने अपने बंधु-बांधव का वध किया है और इसके कारण तुम पाप के भागी बने हो। इन पापों से मुक्ति सिर्फ महादेव ही दिला सकते हैं। इसलिए अब समय आ गया है कि तुम महादेव की शरण में जाओ।" 

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इसके बाद श्री कृष्ण द्वारका लौट गए और पांडव पापों से मुक्ति के लिए चिंतित रहने लगे। उसी दौरान पांडवों को खबर मिली कि भगवान श्री कृष्ण ने अपना देह त्याग दिया है। इस दुखद समाचार ने पांडवों को झकझोर कर रह दिया। अब जब उनके सदा के सहायक कृष्ण भी नहीं रहे पांडवों ने अपने राज्य परीक्षित को सौंप दिया और द्रौपदी सहित भगवान शिव की तलाश में निकल पड़े। सबसे पहले पांडव काशी पहुंचे लेकिन वहां भोलेनाथ के दर्शन नहीं हुए। वे कई अन्य स्थानों पर भी गए परंतु जहां भी पांडव पहुंचते शिवजी वहां से चले जाते। इस खोज में वे एक दिन हिमालय तक आ पहुंचे तब भगवान शिव ने पांडवों को आता देख नंदी का रूप धारण कर लिया। और पशुओं के झुंड में चले गए भगवान शिव को पाने के लिए भीम ने एक योजना बनाई। उन्होंने विशाल रूप धारण कर अपने पैर केदार पर्वत के दोनों ओर फैला दिए ताकि कोई भी पशु उनके पैरों के बीच से निकल सके। लेकिन नंदी रूपी भगवान शिव ने ऐसा नहीं किया। तभी भीम ने नंदी को पहचान लिया और पकड़ने का प्रयास किया। 


लेकिन शिवजी धरती में समाने लगे भीम ने उनका पिछला हिस्सा पकड़ लिया। भगवान शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर उनके पापों से मुक्त कर दिया। तभी से भगवान शिव यहां नंदी की पीठ के रूप में पूजे जाते हैं। इसी वजह से केदारनाथ का शिवलिंग बाकी शिवलिंग से अलग है। ऐसा कहा जाता है कि जब भगवान शिव ने पांडवों को उनके पापों से मुक्त किया और उनका प्रायश्चित स्वीकार किया। तब पांडवों ने केदारनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव का शरीर पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में प्रकट हुआ। जिससे पंच केदार की उत्पत्ति हुई भगवान शिव का मुख नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर में भुजाएं तुंगनाथ में मुख रुद्रनाथ में नाभी मद्महेश्वर में और जटाए कल्पेश्वर में प्रकट हुई। यही पांच स्थान पंच केदार के रूप में पूजित है। केदारनाथ को पंच केदार में सबसे प्रमुख माना जाता है क्योंकि यहां भगवान शिव के पीठ रूप की पूजा की जाती है। इस कथा से आपके मन में क्या ख्याल आते है हमें कमेंट करे।  

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