समय क्या है? एक ऐसी चीज जिसे आज तक कोई नहीं समझ पाया जो लगातार बह रहा है एक ऐसी चीज जिसका हमारी रोज जीवन में इस्तेमाल होता है। एक ऐसी चीज जिसके ना होने से हमारा अस्तित्व भी ना हो, जो लगातार ब्रह्मांड को बदल रहा है। एक ऐसी चीज जिसमें समाया है सारा इतिहास, वर्तमान और आने वाला भविष्य। एक ऐसी चीज जिसकी कोई कीमत नहीं है। पूरी दुनिया की सारी दौलत मिलाकर भी आप एक पल के लिए नहीं खरीद सकते। लेकिन विज्ञान की नजरों से हम इस पल को जान सकते हैं तो सवाल है कि आखिर समय क्या होता है ? क्या वास्तव में समय का अस्तित्व है भी या नहीं या फिर समय एक भ्रम है अगर समय एक भ्रम है तो यह भ्रम पैदा कैसे होता है।
दोस्तों मान लीजिए कि आप एक ऐसे ग्रह पर रह रहे हैं जिसे रोग प्लेनेट कहा जाता है जो अंतरिक्ष की गहराइयों में कहीं आवारा भटकता रहता है जिसके चारों ओर कोई उपग्रह नहीं है ना ही कोई सूरज ऐसे ग्रह पर लगातार अंधेरे का ही साम्राज्य रहेगा ऐसे में अगर आपको इस ग्रह पर एक साल के लिए छोड़ दिया जाए तो क्या आप बता सकते हो कि कितना समय बीत चुका है ना दिन ना रात ना पूर्णिमा ना अमावस्या ऐसा कोई साइक्लिक पैटर्न आप उस ग्रह पर नहीं देख पाओगे ऐसे में क्या आप बता पाओगे कि कितना समय बीत चुका है? वहीं धरती पर मौजूद एक बच्चा भी आसानी से कैलकुलेट कर लेगा कि वह कितने समय से जी रहा है। क्योंकि यहां सूरज और चांद की वजह से एक साइक्लिक पैटर्न मौजूद है जिससे हम सब प्रवासी समय को एक्सपीरियंस कर पाते हैं।
क्या समय वास्तव में एजिस्ट करता भी है या नहीं ? क्या समय हम इंसानों ने अपने जिंदगी के कामकाज के लिए इवेंट किया है? अगर धरती पर दिन रात ना होते चांद ना होता तो क्या हम समय को माप सकते थे? अगर नहीं तो क्या समय वास्तव में एजिस्ट करता भी है या नहीं। दोस्तों अगर सूरज और चांद ना होते तब भी एक ऐसी चीज होती जिसकी वजह से हम यह पता कर पाते कि कितना समय बीत चुका है और वह चीज है स्टार्स, सूरज और चांद के ना होने की वजह से हमें ब्रह्मांड के सितारे आमतौर पर रात में नजर आने वाले सितारों से कई गुना ज्यादा संख्या में दिखाई देते। अगर हमारा आवारा ग्रह अपनी अक्ष पर घूम रहा होता तब यह आसमान भी एक साइक्लिक पैटर्न बनाता। जिस वजह से हम समय को माप सकते हैं। अगर आपको अंतरिक्ष में कहीं दूर अकेले छोड़ दिया जाए तो आप चारों तरफ ब्रह्मांड के सभी तारों गैलेक्सी को देख पाओगे। जिससे आप समय को माप सकते हो। अगर आप अंधे हो तब भी आप अपने हार्टबीट के पैटर्न से समय को माप सकते हैं। यानी हमारा दिल एक मिनट में 72 बार धड़कता है जिससे आप उसे मेजर करके समय को माप सकते हो।
इस थॉट एक्सपेरिमेंट से पता चलता है कि समय एक ऐसी चीज है जिसे मापने के लिए हमें कोई ना कोई रेफरेंस चाहिए। जिसके बिना हम समय को नहीं माप सकते। यहां सवाल उठता है कि अगर कोई रेफरेंस ना हो तो क्या समय भी नहीं होगा? क्या समय नहीं बीतेगा? क्या समय एक कल्पना है जिसके लिए किसी रेफरेंस की जरूरत पड़ती हो। धरती सूरज से छोटी है लेकिन चांद से बड़ी है इसी तरह मान लीजिए अगर आपके अलावा और किसी भी चीज का अस्तित्व ही ना हो तो क्या आप समय को महसूस कर पाएंगे। अगर हम मान ले कि इस वजह से समय जैसी कोई चीज ही नहीं है तब यही सवाल साइज पर भी उठेगा कि क्या किसी वस्तु की कोई साइज होती भी है या नहीं। धरती के अलावा कुछ भी ना हो तब धरती छोटी है या बड़ी इस बात का कोई मतलब नहीं रह जाता। आसमान में मौजूद करोड़ों तारे इस बात के गवाह है कि ब्रह्मांड का अस्तित्व है। जहां अनगिनत चीजें मौजूद है उन्हीं में से एक ऐसी चीज जिसे हम आज तक नहीं जान पाए हैं। प्राचीन लोग जिसे हमेशा जानने की को कोशिश में अनेकों कल्पनाएं करते रहे हैं वह चीज है समय। अगर समय एजिस्ट करता है तो वह क्या है? कैसा है? क्या समय को हम जान सकते हैं।
आखिर समय का विज्ञान क्या है?
विज्ञान के शुरुआती समय में न्यूटन जैसे वैज्ञानिक समय को एक यूनिवर्सल और एब्सलूट चीज मानते थे। जो हर जगह एक समान बहाव में चलता है लेकिन जैसे-जैसे विज्ञान ने प्रगति की ब्रह्मांड की और गहराइयों में उतरे तब वैज्ञानिकों के लिए नए चैलेंज सामने आए। जैसे कि गुरुत्वाकर्षण बल को कॉस्मिक स्केल पर कैसे समझा जाए। ग्रेविटी आखिर कैसे काम करती है। क्वांटम दुनिया में कुछ ऐसे इवेंट्स देखे गए जहां समय की आम मान्यताएं टूटती नजर आई। 20वीं सदी में जब एल्बर्ट आइंस्टाइन ने 1905 में स्पेशल थिरी ऑफ रिलेटिविटी को हमारे सामने रखा और 1915 में जनरल थिरी ऑफ रिलेटिविटी देकर समय के विज्ञान को खोलकर रख दिया। आइंस्टाइन की थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी समय को एक नए ढंग से देखती है यह हमें स्पेस टाइम के बारे में बताती है। यानी आइंस्टाइन के अनुसार स्पेस और टाइम दोनों एक ऐसी चीज है जिसे हम एक दूसरे से अलग करके नहीं देख सकते। स्पेस और टाइम दोनों अलग नहीं है बल्कि दोनों एक दूसरे में कुछ इस तरह गूंथे हुए हैं जिसे हम स्पेस टाइम फैब्रिक कहते हैं। यह स्पेस टाइम एक ऐसी चीज है जो हर जगह मौजूद है हमारे अंदर भी धरती के अंदर भी अंतरिक्ष में हर जगह यह मौजूद है।
दुनिया की कोई भी चीज जिसमें कुछ ना कुछ मास हो वह इस स्पेस टाइम फैब्रिक को अफेक्ट करती है। यानी सूरज धरती सभी तारे ग्रह उपग्रह और एस्टेरॉइड इस स्पेस टाइम के अंदर ही मौजूद है और इसे प्रभावित करते हैं। यहां तक कि हम और आप सभी इस स्पेस टाइम को कुछ ना कुछ प्रभावित करते हैं। जिस वस्तु में जितना मास होता है वह स्पेस टाइम को उतना ही अधिक कर्व करता है। और उसी वजह से गुरुत्वाकर्षण बल पैदा होता है। एक ब्लैक होल स्पेस टाइम को इतना अधिक कर्व कर देता है कि वैज्ञानिकों के अनुसार इसके सेंटर पर टाइम ही शून्य हो जाता है। यानी समय भी वहां एजिस्ट नहीं करता। वहीं पर स्पेस में जो चीज जितने ज्यादा स्पीड से चलती है समय उसके के लिए उतना ही धीरे चलने लगता है। प्रकाश की गति पर आकर समय भी रुक जाता है यानी प्रकाश के लिए समय गुजरता ही नहीं। प्रकाश समय को फील ही नहीं करता। यहां से हमें यह पता चलता है समय एक ऐसी चीज है जिसे हम स्पेस से अलग करके नहीं देख सकते। वहीं रिलेटिविटी हमें बताती है कि समय एक ऐसी चीज है जो गुरुत्वाकर्षण बल और स्पीड से प्रभावित होता है जितना अधिक गुरुत्वाकर्षण बल होगा वहां समय उतना धीरे चलेगा और जितना अधिक स्पीड होगी वहां समय धीरे चलेगा।
ब्लैक होल के केंद्र में और प्रकाश की गति पर आकर समय भी थम जाता है। इस बात को साबित करने के लिए वैज्ञानिकों ने एक एक्सपेरिमेंट किया जिसे हाफेले कीटिंग एक्सपेरिमेंट कहा जाता है। जिससे यह बात पूरी तरह सभीत हो गई कि समय का कोई यूनिवर्सल बहाव नहीं है जो हर जगह एक ही फ्लो में बह रहा हो, बल्कि यह बहाव हर जगह अलग-अलग है। दोस्तों 1971 में जोसेफ हेफे और रिचर्ड कीटिंग ने एक एक्सपेरिमेंट किया। जहां दो एटॉमिक क्लॉक्स को दो एयरप्लेन में रखा गया। जहां एक प्लेन पूरी धरती के चारों ओर ईस्ट डायरेक्शन में चक्कर काटता है तो दूसरा वेस्ट डायरेक्शन में। जब इन क्लॉक में मौजूद टाइम को धरती पर मौजूद यूएस नेवल ऑब्जर्वेटरी के टाइम से मैच किया गया तो इन तीनों क्लॉक्स के टाइम में डिफरेंस नजर आया। यह डिफरेंस आइंस्टाइन की थ्योरी द्वारा प्रिडिक्ट किए गए डिफरेंस के बरा बराबर था। यह तीनों क्लॉक्स के टाइम में कुछ नैनो सेकंड्स का डिफरेंस आया। जो आइंस्टाइन की थ्योरी को पूरी तरह से सही साबित करता है कि समय का बहाव हर जगह अलग-अलग है धरती के ऊपर ग्रेविटी कम है और धरती पर नीचे ग्रेविटी अधिक है। जिस वजह से इन एटॉमिक क्लॉक्स द्वारा मेजर किए गए टाइम में डिफरेंस से हमें पता चलता है कि वास्तव में स्पीड और ग्रेविटी की वजह से समय के बहाव में फर्क आता है यानी आपके पैर के अंगूठे और आपके सर के बीच टाइम के फ्लो में अंतर है। यह अंतर इतना कम है कि वह हमारे लिए ना के बराबर है। जहां न्यूटन टाइम को एब्सलूट मानते थे यानी वह हर जगह एक समान बहाव से चल रहा है वहीं आइंस्टाइन ने यह साबित कर दिया था कि टाइम एक ऐसी चीज है जो ब्रह्मांड में हर जगह अलग-अलग बहाव में चलती है जिसे ग्रेविटी और स्पीड दोनों अफेक्ट करते हैं।
अगर आप प्रकाश की गति के 99 / स्पीड पर चलो तो आपके लिए समय काफी धीरे हो जाएगा। वहीं हमारी दुनिया का समय काफी तेजी से बीतेगा जिस वजह से जब आप नॉर्मल स्पीड पर आओगे। तब तक हमारी दुनिया समय में काफी आगे पहुंच चुकी होगी। यानी अगर हम ऐसी ट्रेन बना पाएं जो प्रकाश की गति से धरती के चारों ओर चले तो हम भविष्य यात्रा यानी टाइम ट्रेवल भी कर सकते हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीवन हॉकिंग के अनुसार अगर आप ऐसी ट्रेन में बैठे हो जो लाइट स्पीड से चल रही है ऐसी ट्रेन के अंदर के यात्रियों के लिए समय काफी धीरे-धीरे चलेगा। और बाहर की दुनिया में समय ट्रेन के मुकाबले काफी तेजी से बह रहा होगा। अगर ट्रेन के अंदर की क्लॉक के अनुसार आप एक हफ्ते इस ट्रेन में बैठे रहो तो बाहर 10 साल बीत जाएंगे। और जब आप अपने टाइम के अनुसार एक हफ्ते बाद बाहर निकलोगे तो आप 10 साल आगे एक भविष्य की दुनिया में एंटर करोगे। यानी आप वास्तव में भविष्य में समय यात्रा कर सकते हो। स्पेस टाइम ही हमारी टाइम की इस रियलिटी को शेप करता है इस वजह से अल्बर्ट आइंस्टाइन के अनुसार हम सब स्पेस टाइम से घिरे एक ब्लॉक यूनिवर्स में रह रहे हैं। जहां पास्ट प्रेजेंट और फ्यूचर सब एक साथ एजिस्ट करते हैं। यह ब्लॉक यूनिवर्स प्रेजेंट मोमेंट में एजिस्ट करता है इसके लिए कोई पास्ट और फ्यूचर जैसी चीज नहीं है लेकिन इस ब्लॉक यूनिवर्स में पास्ट प्रेजेंट और फ्यूचर एक साथ एजिस्ट करते हैं। इसका मतलब यह है कि जिसे हम पास्ट कहते हैं वह इस यूनिवर्स के अंदर कहीं ना कहीं प्रेजेंट है जिसे हम फ्यूचर कहते हैं।
इस यूनिवर्स में कहीं ना कहीं फ्यूचर ऑलरेडी एजिस्ट करता है। इस बात को हम एक इंटरेस्टिंग ऑब्जर्वेशन से भी समझ सकते हैं सूरज से आने वाली लाइट को हम तक पहुंचने में 8 मिनट लगते हैं ऐसे में आप सब जब सुबह सूरज को देखते हैं तो आप 8 मिनट पुरानी घटना देख रहे होते हैं। यानी आप पास्ट को देखते हैं लेकिन 8 मिनट पहले यही पास्ट सूरज का प्रेजेंट था और अब यह पास्ट की इंफॉर्मेशन हमारे प्रेजेंट मोमेंट में एजिस्ट करती है। वहीं इसी वक्त सूर्य का प्रेजेंट मोमेंट हमें अगले आठ मिनट बाद मिलेगा जो कि फिलहाल हमारे प्रेजेंट मोमेंट के हिसाब से फ्यूचर में एजिस्ट करता है। यहां आप समझ सकते हैं कि कैसे फ्यूचर पास्ट और प्रेजेंट को एजिस्ट करते हैं। आज से 65 करोड़ साल पहले डायनासोर का अंत हुआ। पास्ट की यह घटना आज भी धरती से 65 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर मौजूद किसी ग्रह पर बैठे एडवांस एलियंस के लिए उसके प्रेजेंट मोमेंट में देखी जा सकती है। अगर उनके पास एक ऐसा टेलिस्कोप हो जो धरती पर काफी डिटेल में देख सके तब वह एलियंस करोड़ों साल पुरानी इस घटना को अपने प्रेजेंट मोमेंट में देख पाएंगे। क्वांटम दुनिया के कुछ फेनोमेनो यह बताते हैं कि जैसे क्वांटम वर्ल्ड को समय की जरूरत ही ना हो क्वांटम एंटेंगलमेंट जैसी प्रक्रियाएं यह बताती है कि एक पार्टिकल की इंफॉर्मेशन दूसरे पार्टिकल तक इंस्टेंट पहुंच जाती है यानी बिना कुछ समय लगे ही इंफॉर्मेशन अनंत दूरी पर भी जा सकती है।
एल्बर्ट आइंस्टाइन की जनरल रिलेटिविटी भी यूनिवर्स में कुछ नॉन लोकल कनेक्शंस जैसे कि वर्म होल्स का होना डिक्ट करती है जिनके थ्रू हम किसी भी जगह बिना कुछ समय लगे पहुंच सकते हैं। यानी शायद समय सिर्फ एक भ्रम हो तो। इस तरह हमारे पास टाइम को लेकर दो पॉइंट ऑफ व्यूज है जिनके अनुसार या तो टाइम एजिस्ट ही नहीं करता यह मात्र हमारा परसेप्शन है या फिर यह एजिस्ट करता है। दोनों ही सिनेरियो में आइंस्टाइन की थिरी ऑफ रिलेटिविटी सही साबित होती है। अगर टाइम एजिस्ट करता है तो हम सब एक स्पेस टाइम के एक जाल में कैद है जिसमें पास्ट प्रेजेंट और फ्यूचर सब एक साथ एजिस्ट करते हैं। जहां भविष्य में समय यात्रा भी संभव है जहां पैरेलल टाइमलाइंस भी संभव है जहां पर कोई भी मोमेंट स्पेशल नहीं है। हियर ऑल मोमेंट्स एजिस्ट ऑल द टाइम वहीं पर दूसरी तरफ अगर टाइम सिर्फ एक परसेप्शन है तो वह परसेप्शन एंट्रोपय होता है यूनिवर्स में होने वाले बदलावों की वजह से पैदा होता है ऐसे में आपको क्या लगता है क्या टाइम वास्तव में एजिस्ट करता है अगर टाइम करता है और आपको टाइम ट्रेवल का मौका मिले तो आप कौन से टाइम पीरियड में जाना चाहोगे।