रामयण की परम्परागत कथा इस बात पर आधारित है की एक समय दानव और राक्षस जैसी शक्ति रावण के रूप में प्रकट होती है। जो अपनी ताकत के नसें में चूर धरती को अपने पैरो के नीचे रोंद्ता चला जा रहा है। त्रेता युग में रावण, एक राक्षस राजा, अत्यंत बलशाली, अहंकारी और अधर्मी हो गया था। उसने स्वर्ग, धरती और पाताल लोक में अत्याचार मचा रखा था। उस समय धरती, ऋषि, मुनि और देवतागण सभी मदत के लिए भगवान विष्णु के पास जाते है। सभी की पुकार और दर्द पीड़ा को देखकर उनको उनकी सहायत के लिए वचन देते है। इस कथा से एक इंशान को सच्चाई के रास्ते पर चलने की हिम्मत आती है। उससे विश्वास होता है की आखिर में हमेशा सच्चाई की जीत होती है और संसार में एक ही नारा गूंजता रहेगा " सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते "।
जब रावण द्वारा सारी धरती पर कष्ट बढ़ने लगा तो, सभी देवता और ऋषि मुनि भगवान विष्णु के पास जाते है और अपने सारे दुःख बताते है। उनकी पीड़ा को सुनकर भगवान विष्णु सहायता के लिए धरती पर श्रीराम के रूप में सातवा अवतार ले लेते है। वही उनकी सहायत और सेवा के लिए शिवजी हनुमान के रूप में अवतार लेते है।
भगवान श्री राम जी का जन्म:
जब महाराज दशरथ को तीन शादी करने के बाद पुत्र प्राप्त नहीं होता है तो उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया। उन्होंने अपने घोड़े श्यामकर्ण को चतुरांगी सेना के साथ चारो दिशाओ में समस्त बड़े छोटे ऋषि मुनि, तपस्वी, वेदविज्ञ प्रकाण्ड पंडितो को आमंत्रण भेजा। निश्चित समय पर सभी ऋषि मुनि और पंडितो के साथ महाराज दशरथ अपने गुरु और परम मित्रो के साथ यज्ञ में पहुंचते है। महान यज्ञ का शुभ आरम्भ किया और चारो तरफ वेदों की उच्च स्वर में पाठ गूंजने लगा। सभी पंडितो, ऋषियों को आदर और धन धान भेंट करके यज्ञ को समाप्त किया। महाराज दशरथ ने यज्ञ से प्रसाद के रूप में चार(खीर) को अपनी तीनो रानियों को खिलाया। प्रसाद लेने के बाद परिणामस्वरूप गर्भ धारण किया।
यज्ञ प्रसाद से राजा दशरथ की पहली पत्नी कौशल्या को एक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका नाम राम रखा गया। उनकी दूसरी पत्नी ने दो पुत्रो को जन्म दिया जिनका नाम लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखा गया। और उनकी तीसरी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम भरत रखा गया। उनकी जन्म लेने पर पूरी धरती के जीव, पराणी और आसमान में देवताओ उल्लास का माहौल था। उनकी ऊपर फूलो की बारीश की गयी।
भगवान श्री राम जी के भाई किस के अवतार थे:
लक्ष्मण – शेषनाग के अवतार थे। शेषनाग वही दिव्य नाग हैं, जिन पर भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। भरत – भगवान विष्णु के चक्र (सुदर्शन चक्र) के अवतार माने जाते हैं। शत्रुघ्न – भगवान विष्णु के शंख (पांचजन्य शंख) के अवतार माने जाते हैं।
रावण को भगवान राम ही क्यों मार सकते थे?
रावण ने घोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से वरदान माँगा था कि: “मुझे कोई देवता, दानव, राक्षस, गंधर्व, किन्नर या नाग कभी भी न मार सके।” लेकिन अहंकारवश रावण ने यह नहीं सोचा कि कोई मानव या वानर भी उसका वध कर सकता है। उसने मनुष्य को तुच्छ और कमजोर समझा। इस वरदान के कारण कोई देवता रावण का वध नहीं कर सकता था। इसी कारण मनुष्य रूप में भगवान विष्णु (श्रीराम) का अवतार हुआ। रावण को मारना केवल मर्यादा और धर्म का पालन करने वाले द्वारा ही संभव था। रावण का वध करना अब केवल एक व्यक्तिगत प्रतिशोध नहीं, बल्कि धर्म युद्ध बन गया था। जिसे केवल धर्म के रक्षक श्रीराम ही कर सकते थे।
रावण को कौन कौनसे वरदान प्राप्त थे?
रावण ने अनेक वरदान प्राप्त किये थे। जिनकी वजह से रावण बहुत बलशाली, अभिमानी और लगभग अजेय बन गया था। ये वरदान उसे अलग-अलग देवताओं से कठोर तपस्या के माध्यम से प्राप्त हुए थे। रावण ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए हजारों वर्षों तक तपस्या की थी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उनको देवता, असुर, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, नाग आदि कोई भी उसे मार नहीं सके ऐसा वरदान मिला था। यह वही वरदान है जिसकी वजह से भगवान विष्णु को धरती मनुष्य रूप में अवतार लेना पड़ा।
वण भगवान शिव का परम भक्त था। भगवान शिव जी ने उनको अत्यंत बलशाली योद्धा बनाया। चंद्रहास नामक दिव्य खड्ग (तलवार) प्रदान की। उनसे शिवतांडव स्तोत्र रचने की प्रेरणा और शक्ति मिली। शिवजी के आशीर्वाद से वह संगीत, शास्त्र और वेदों का ज्ञाता बना गया। रावण के पास ब्रह्मा, शिव और अन्य देवताओं से मिले वरदान थे, जिनके कारण वह अमर के समान हो गया था।
क्या भगवान श्रीराम जानते थे कि माता सीता का हरण होने वाला है?
भगवान श्रीराम, भगवान विष्णु के अवतार थे। एक ईश्वर रूप में वे सब कुछ जानते थे। उन्हें रावण का वध करना था। धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश करने के लिए माता सीता का हरण हुआ।
भगवान श्रीराम के पुत्र:
भगवान श्रीराम के दो पुत्र थे – लव (लवण) और कुश। ये दोनों माता सीता के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। उनका जन्म वाल्मीकि आश्रम वन में, सीता के वनवास के समय हुआ था। जब सीता माता अग्नि परीक्षा के बाद भी समाज के तानों से आहत होकर वन चली गईं, तो ऋषि वाल्मीकि के आश्रम में उन्होंने दोनों पुत्रों को जन्म दिया।
भगवान श्री राम जी की प्राण प्रतिष्ठा:
अयोध्या में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की गयी। इस दिन पुरे भारत देश में प्रसन्ता का माहौल था। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समय गर्भग्रह में 121 पंडितो को शामिल किया गया था। हिंदू धर्म परंपरा में प्राण प्रतिष्ठा एक पवित्र अनुष्ठान है, जो किसी मूर्ति में उस देवता या देवी का आह्वान करते है। यह प्राण प्रतिष्ठा पवित्र बनाने के लिए किया जाता है। 'प्राण' शब्द का अर्थ है जीवन और जबकि प्रतिष्ठा का अर्थ है 'स्थापना। ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है 'प्राण शक्ति की स्थापना''।